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हो ... आधी रात शिखर त ढलगी मेरे जी न गाला होग्या के सपना तेरा जीकर करूं ढंग मजनू आला होग्या आधी रात शिखर त ढलगी मेरे जी न गाला होग्या के सपना तेरा जीकर करूं ढंग मजनू आला होग्या आधी रात शिखर त ढलगी सपने के मह आते दिखे एक बाहमण एक नाई ब्याह की चिट्ठी लिये फिरै थे घर घर बटै मिठाई बान तेल त खूब नहवाया गावैं गीत लुगाई माहरे घर का न चाह म भर मेरी बढ़िया बरात सजाई पांच मंजोली दस रथ थे गाड़ियां का लारा होग्या आधी रात शिखर त ढलगी जीतणे बराती मेरी बरात के सारे घोड़े लेरे गलियाँ म तै फिरै हांडते कितणे गजब बछेरे दिन छिपग्या जब होया अँधेरा होवण लागे फेरे गाये गीत लुगाईयाँ न माहरै घर घर बटे छंगेरे मेरै ओलै हाथ न वा बहू बैठगी किसा नया उजाला होग्या आधी रात शिखर त ढलगी सात ढाल की धरी मिठाई बंद डाले की भरी पिटारी एक ओड न कमरे के माह बिछरे पलंग निवारी आँख खुली जब कुछ ना दिख्या रोया दे किलकारी जा सपना तेरी बाहण गोड द्यू बहू लहको ली माहरी जाट मेहर सिंह सपने के माह मेरा मुँह भी काला होग्या आधी रात शिखर त ढलगी
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